Wednesday, December 12, 2018

जाति और मज़हब की भूमिका

आईजीआईडीआर (इन्कम जेनरेशन एंड इनइक्वालिटी इन इंडियाज़ एग्रिकल्चर सेक्टर) के 2016 के रिसर्च पेपर के अनुसार 2003 से 2013 के बीच किसानों की आय में 75 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई.
मध्य प्रदेश के किसानों के परिवारों की प्रति व्यक्ति आय 2013 में 1,321 रुपए हो गई, लेकिन इसके बावजूद यह भारतीयों की औसत आय से सात फ़ीसदी कम है.
इसकी सबसे मुख्य वजह ग्रामीण आमदनी का कम होना है. यह इसलिए अहम है क्योंकि मध्य प्रदेश के 76 फ़ीसदी किसानों के पास बहुत छोटी जोत है और ये ग्रामीण मज़दूरी पर निर्भर हैं.
हालांकि इन सालों में मध्य प्रदेश औद्योगिक सेक्टर में कुछ नहीं कर पाया. 2003 में भारत के औद्योगिक उत्पादन में मध्य प्रदेश का योगदान 3.6 फ़ीसदी था जो 2014 में 3.2 फ़ीसदी हो गया.
मानव विकास सूचकांक के मामले में भी मध्य प्रदेश की स्थिति ठीक नहीं है. मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 1000 में 47 है पर राष्ट्रीय स्तर से (34) ज़्यादा ही है. शिक्षा के मामले में भी मध्य प्रदेश की हालत ठीक नहीं है.
एएसइआर के सर्वे के अनुसार, मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों के सरकारी स्कूलों में 17 फ़ीसदी बच्चे बुनियादी अक्षरों को भी नहीं पहचान पाते हैं जबकि 14 फ़ीसदी बच्चों को बुनियादी अंकगणित का ज्ञान नहीं है. यह तस्वीर राष्ट्रीय स्तर से ज़्यादा चिंताजनक है क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 15 फ़ीसदी और 12 फ़ीसदी है.
मध्य प्रदेश में बेरोज़गारी की समस्या भी विकराल है. इस साल के आर्थिक सर्वे के मुताबिक़ 2016 के अंत तक मध्य प्रदेश में 10.12 लाख रजिस्टर्ड शिक्षित बेरोज़गार हैं और इनमें से 422 लोगों को ही 2017 में रोज़गार मिला.
भारत में चुनाव केवल विकास के मुद्दों पर नहीं होते. जाति और मज़हब की चुनावों में अहम भूमिका होती है और यह चुनाव भी कोई अलग नहीं है.
बीजेपी को जीत दिलाने में आदिवासी और पिछड़ी जाति के वोटों की अहम भूमिका रही है. शिवराज सिंह चौहान ख़ुद किरार जाति के हैं जो मध्य प्रदेश में ओबीसी श्रेणी में आती है. बीजेपी ने पहली बार किसी पिछड़ी जाति के व्यक्ति को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया. आठ दिसंबर, 2003 से पहले बीजेपी के सारे मुख्यमंत्री सवर्ण बने थे. ज़ाहिर है बीजेपी को इसका फ़ायदा भी मिला.
शिवराज सिंह चौहान की सरकार कई लोकप्रिय योजनाओं के लिए भी जानी जाती हैं. यह सरकार लड़कियों के जन्म पर एक लाख रुपए का चेक देती है जिससे 18 साल की उम्र में पैसे मिलते हैं. ग़रीबों के घरों में किसी की मौत पर पांच हज़ार रुपए अंत्येष्टि के लिए देती है. सरकार सामूहिक शादियां कराती हैं और ख़र्च भी ख़ुद ही उठाती है. आदिवासी और दलितों के बीच सरकार की यह योजना काफ़ी लोकप्रिय हुई है. शिवराज अपनी विनम्रता के लिए जाने जाते हैं और सत्ता से विदाई भी उन्होंने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को बधाई देते हुए ली.