Saturday, August 17, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

भारत में हिंसात्मक गौसंरक्षण नाम से छपी ह्यूमन राइट्स वॉच की कई घटनाओं का हवाला देने वाली एक रिपोर्ट में कहा गया कि "लगभग सभी मामलों में शुरू में पुलिस ने जांच रोक दी, प्रक्रियाओं को नज़रअंदाज़ किया और यहां तक कि हत्याओं तथा अपराधों पर लीपापोती करने में उनकी मिलीभगत रही. पुलिस ने तुरंत जांच और संदिग्धों को गिरफ़्तार करने के बजाय, गौहत्या निषेध क़ानूनों के तहत पीड़ितों, उनके परिवारों औगवाहों के ख़िलाफ़ शिकायतें दर्ज की."
मैंने जांच के धागों को समझने के लिए दोनो पक्षों के वकीलों से बात की.
पहलू ख़ान के परिवार के वकील क़ासिम ख़ान अभियुक्तों के बरी होने का कारण पुलिस का कथित ढीलापन, कमज़ोर चार्जशीट और राजनीतिक पैंतरेबाज़ी मानते हैं.
चाहे वो वायरल वीडियो की सत्यता पर सवाल उठे हों, पहलू की 'मौत से पहले दिए गए वक्तव्य' पर बचाव पक्ष के वकील हुकुमचंद शर्मा की ओर से उठाए गए सवाल हों या फिर दो अस्पतालों के डॉक्टरों की पहलू की मौत को लेकर अलग-अलग दलीलें हों, पुलिस की जांच पर कई सवाल हैं.
क़ासिम ख़ान के मुताबिक़ इस हत्या की जांच पहले पुलिस ने की, फिर सीआईडी ने, और उनकी चार्जशीट इतनी भिन्न थी कि बचाव पक्ष का केस मज़बूत हुआ.
क़ासिम ख़ान के मुताबिक़ इस मामले में तीन पुलिस अधिकारियों ने जांच की - रमेश सिंह सिनसिनवार, परिमल सिंह गूजर और रामस्वरूप शर्मा.
आख़िर इस जांच का हश्र कैसे हुआ, मैंने ये समझने के लिए राजस्थान पुलिस के तीनों अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया.
घटना के वक़्त राजस्थान के गृहमंत्री रहे गुलाब चंद कटारिया भी फ़ोन पर नहीं मिले.
जांच से जुड़े एक पुलिस सूत्र से मैंने पूछा कि उन्होंने वायरल हुए वीडियो का सत्यापन क्यों नहीं करवाया और उसके सत्यापन के लिए फ़ोरेंसिक लैब में क्यों नहीं भेजा गया, तो जवाब मिला कि पुलिस ने उस घटना के फ़ोटो तो अदालत के सामने रखे थे, और "शादी के वीडियो और शादी की तस्वीर में कोई फ़र्क़ होता है क्या."
और इस घटना की जांच दो एजेंसियों से क्यों हुई, इस पर उन्होंने कहा कि "मुझे नहीं मालूम. शायद मीडिया में ये मामला बहुत हाइलाइट हो गया था.
श्रीनगर के सौरा इलाक़े में शुक्रवार को हम फिर उसी दरगाह पर पहुंचे जहां से पिछले सप्ताह स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन और रैली शुरू की थी.
पिछले सप्ताह 9 अगस्त शुक्रवार को सौरा में ही बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे. इसमें हज़ारों लोगों ने भाग लिया था जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. आज हमने सौरा में जाने की कोशिश की.
सौरा में जब हम गए तो देखा कि वहां हर गली और हर रास्ते पर बैरिकेड लगा था. साथ ही बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी मौजूद थे. सुरक्षाकर्मियों का मानना था कि अगर वह बैरिकेड हटाते हैं तो बड़े पैमाने पर लोग मुख्य सड़क तक आ जाएंगे.
सुरक्षाकर्मियों का मानना है कि अगर प्रदर्शनकारी मुख्य सड़क तक आ गए तो उन्हें संभालना मुश्किल हो जाएगा और क़ानून-व्यवस्था बिगड़ जाएगी.
पिछले सप्ताह के मुक़ाबले इस सप्ताह की बात करें तो आज जुमे की नमाज़ के बाद सैकड़ों लोग इकट्ठा हुए. इनमें पुरुष और महिलाएं शामिल थे जिन्होंने शांतिपूर्ण रैली निकाली. यह रैली गलियों-मोहल्लों में घूमते हुए वापस इसी दरगाह तक पहुंची.
रैली समाप्त होने के बाद दरगाह के लाउडस्पीकर से वो गीत सुनाए जा रहे थे जो कश्मीर की आज़ादी की बात कर रहे थे.
इन्हीं लाउडस्पीकर के ज़रिए सुबह से लोगों को घरों से बाहर बुलाया जा रहा था कि वह विरोध प्रदर्शनों में शामिल हों. एक तरह से अगर देखें तो लोगों के अंदर डर ख़त्म हो रहा है और गुस्सा बढ़ता जा रहा है.
प्रदर्शन के दौरान एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि उनका हक़ उनसे छीना जा रहा है.
उन्होंने कहा, "हमारा हक़ हमसे क्यों छीना जा रहा है. हम भारत सरकार से कह रहे हैं कि वह हमारा हक़ हमें वापस दे. हमने शांतिपूर्ण जुलूस निकाला है लेकिन तब भी हम पर पैलेट गन्स और आंसू गैस के गोले छोड़े गए हैं. यह ज़्यादती नहीं है तो क्या है."
एक महिला प्रदर्शनकारी ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाकर भारत सरकार ने कश्मीर को एक संघर्ष क्षेत्र में बदल दिया है.
उन्होंने कहा, "हम अनुच्छेद 370 को हटाने के विरोध में यह प्रदर्शन कर रहे हैं. मोदी सरकार ने यह करके कश्मीर को एक संघर्ष और युद्ध क्षेत्र में बदल दिया है. सुरक्षाकर्मी हम पर पैलेट गन्स और आंसू गैस से वार कर रहे हैं. हम अनुच्छेद 370 के लिए मरेंगे."
"यह मोदी के लिए संदेश है कि हम न ही भारत और न ही पाकिस्तान के साथ रहना चाहते हैं. हम स्वतंत्र कश्मीर चाहते हैं. हर आदमी के पास अधिकार होता है और हमारे पास भी अधिकार है. हम स्वतंत्र कश्मीर चाहते हैं."